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आदिवासी समाज और ऑपरेशन ग्रीन हंट भाग-2

विचार भूमि
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प्रिय पाठको, “ऑपरेशन ग्रीन हंट और आदिवासी समाज” के पहले भाग पर विचार करने और अपने विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद. इस लेख के पहले भाग पर मुझे समलित प्रतिकियाए प्राप्त हुई. किसी पाठक ने लिखा की अपने ही देश के लोगो पर बन्दूक उठाना गलत है और किसी ने लिखा की यह सही है. अपनी-अपनी सोच के पीछे, सब के अपने अपने कारण है.

सब से पहले तो मै यह कहना चाहूँगा की, मै भारत के अन्दर, भारतवासियों के बीच में किसी भी तरह का हिंसा का पुरजोर विरोध करता हूँ. ये हिंसा चाहे नस्सलवादियों के द्वारा सुरक्षाबालो के खिलाफ हो या सुरक्षाबालो के द्वारा नस्सलवादियों खिलाफ. यह एक बड़ा सच है की देश की सेना विदेशी अक्रान्ताओ या आतंकवादियों के खिलाफ अहिंसा से नहीं जीत सकती है, और उतना ही बड़ा सच यह है की सेना कभी भी अपने ही लोगो पर हथियार उठा कभी जीत नहीं सकती है. अपने ही लोगो पर बन्दूक उठाकर किसी दल समूह पर अपना डर तो कायम किया जा सकता है लेकिन शांति नहीं प्राप्त कर सकती है.

एक आम भारतवासी को, आतंकवादी और नस्सलवादी के बीच में फर्क नहीं जान पड़ता है. उनके लिए दोनों ही तरह के लोग वो लोग है जिन्हों ने बन्दूक उठाई है, सरकार के और लोगो के खिलाफ. जब की सच यह है की आतंकवाद का मतलब है की ऐसा समूह, जो लोगो के बीच आतंक फैलाना चाहता है, आम लोगो को मर कर या उनको नुकसान पंहुचा कर कर. भारत के ज्यादातर आतंकवादी अपने पडोसी देश पाकिस्तान की सौगात है. अतंकवादियो को ट्रेनिंग, पैसा और हथियार, सब या तो पाकिस्तान या बंगलादेश से आता है. अतंकवादियो का कोई मजहब नहीं कोई अपना नहीं, ये वो लोग है जो पूरी तरह से भारत को नुकसान पहुचने की उम्मीद कर के भारत आते है. यहाँ यह लिखना जरूरी है की आतंकवादी कही से भी आये और कितने भी संसाधन लेकर आये लेकिन कभी सफल नहीं हो सकते. इस विश्वास का श्रेय पूरी तरह भारत की मजबूत सेना और भारतीयों के बीच गहरे भाईचारे को जाता है.

अभी अगर हम नस्सलवाद को समझाने की कोशिश करे तो यह वो आन्दोलन है जिसको वहां के लोकल लोगो का काफी समर्थन मिल रहा है. नस्सलवादी बाहर से नहीं आये है, वो हमारे और आप के जैसे ही भारत का हिस्सा है. नस्सलवाद उन इलाको में ज्यादा फैला है जहाँ भ्रष्टाचार, माफियावाद और राजनीतिक लूट खसोट सब से ज्यादा है. यह वो इलाके है जहाँ कोयला, जस्ता, इस्पात और लकड़ी प्रचुर मात्र में है, और यही वो चीजे है जिसने इन इलाको को सब से जयादा गरीब और पिछड़ा बना दिया है. इन इलाको का प्राइवेट और सरकारी कंपनिया पूरी तरह से दोहन कर रही है. विस्थापन के नाम पर, इन इलाके के लोगो को अपनी जमीन और अपने ही घर से निकल दिया जाता है. इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालो को जेलों में डाल दिया जाता है, या उन्हें मौत के घाट उतर दिया जाता है. ये वो इलाके है जहाँ भारत की खनिज सम्पदा तो सबसे अधिक है ही लेकिन साथ में भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा भी चरम पर है.

मेरी विचार से देश हित में यही होगा की सरकार खुले मन से बिना किसी शर्त नस्सलियो से बात करे और उनके परेशानियों को दूर करने की एक इमानदार कोशिश करे. सरकार को इन पिछड़े इलाको में, वहां के आदिवासियों के भले के लिए पूरी ताकत से उनकी भुखमरी और गरीबी का हल ही ढूंढना चाहिए.

यह तो निश्चित है सरकार में बैठे लोग उन गुमराह नस्सलियो से ज्यादा शिक्षित है, और वो लोग इस बात को समझेगे, की अगर किसी जहरीले साप को मरना हो तो साप की कमजोरी उसके फन पर वर करना चाहिए न की पूछ पर. क्योकि की पूछ पर किया गया वार साप को और खतरनाक बना देता है.

नस्सल्वादियो के लिए भी मै यही कामना करूँगा की वो भी हथियार छोड़ जल्द से जल्द भारत की मुख्यधारा में लौटेगे. इश्वर करे बन्दूक थामे हर हाथ भारत की रक्षा के लिए उठे न की आपस में लोगो का खून बहाने के लिए.

आखिर में यही कहूँगा की ..सियासत  करने वाले सियासत देखे…मेरा तो पैगाम है मोहबत जहाँ तक पहुचे…..

जय हिंद…


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