जगदालपुर में हुए अत्यंत ही लोमहर्षक संहार ने सारे देश को हिला कर रख दिया है. आज तक आजाद भारत के इतिहास में इतना बड़ा हमला कभी भी देश के अन्दर नहीं हुआ है. इस घटना का सब से दुखद पहुलू है की मरने वाले जवानों में अधिकांशतः युवा है जीने उम्र कही २२ से २८ साल के बीच में है. इसको नसलवादियों का दुसाहस ही कहेगे जिसके बूते पर उन्होंने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया है.
मैंने कुछ दिन पहले ही ऑपरेशन ग्रीन हंट पर सवाल उठाये थे और आशंका जाहिर करी थी की नस्सलवाद का पीछा करने में, सरकार गलत तरफ जा रही है. नसलवादियों की इस घटना को किसी भी कीमत पर जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है. लेकिन सरकार ने जो रास्ता नस्सलवाद को ख़तम करने का अपनाया है वह यही कही जा कर ख़तम होता है. कल ८० सुरक्षाबल के जवान मरे गए और कल फिर ८०-९० नस्सल्वादी मारे जायेगे और ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा. जैसा मैंने अपने पिछले लेख में भी लिखा था यहाँ मरे कोई भी, खून दोनों तरह गरीब, निमन्वर्ग और आदिवासियों का ही बहेगा. ये जो ८० सुरक्षाबलों की जाने गई है वो भी समाज के कोई बहुत ताकतवर वर्ग से नहीं आते वो भी या तो छतीसगढ, झारखण्ड, यु पी और नागालैंड से निम्न माध्यम वर्गीय परिवार के लड़के थे.
इस पूरे नरसंहार में एक और बात चौकाने वाली है की १००० से जयादा नस्सलियो ने एक साथ सुरक्षाबलों पर हमला किया. इस को देख कर सब से पहले यहाँ ख़ुफ़िया विभाग की चूक नज़र आती है, की इतनी बड़ी संख्या में नस्सली जगदलपुर में हमला करने का प्लान बनाते रहे और ख़ुफ़िया तंत्र को बिलकुल भी भनक नहीं लगी. एक बात और, भारत दसियों साल से आतंकवाद से पीड़ित रहा है लेकिन आजतक आतंकवादी कभी भी इतने लोगो के साथ देश के अन्दर हमला करने की न तो हिम्मत जुटा पाए है और न ही संसाधन.
हमको ये सोचना ही होगा की नस्सलवादियों को इतने लड़ाके कहाँ से मिल रहे है जिनको सरकार और सुरक्षाबलों का कोई खौफ नहीं है, जिससे की वो इतनी बड़ी संख्या में इकठा हो कर, इतने बड़े बड़े हमले कर पा रहे है. निश्चित ही नस्सलियो ने इतना बड़ा हमला सरकार को यह बताने के लिए किया है की वो अभी भी उतने ही ताकतवर है जितना की ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के समय पर थे. देश की सुरक्षाबलों को भी ये समझाना होगा की वो एक ऐसी जगह पर लड़ रहे है जिस जगह को वो तो बिलकुल नहीं जानते लेकिन उनका दुश्मन वही पर पला बढ़ा है और वह के चप्पे चप्पे से वाकिफ है. इस तरह के युद्ध क्षेत्र में कोई भी चूक जानलेवा हो सकती है.
नस्सलियो के विचार से वो क्रांति की लड़ाई लड़ रहे है जिसमे उन्होंने अपने ऊपर होने वाले अन्ययो के खिलाफ हथियार उठाया है. इस हथियार बंद लड़ाई के पहले उन्होंने किया भी काफी काम है, आदिवासी इलाको और आदिवासी लोगो के लिए लेकिन इस तरह की आमने सामने की बन्दूक की लड़ाई में किसी का भला नहीं होने वाला है. नसलवादी कितनी ही बंदूके उठा ले लेकिन वो भारतीय सुरक्षबलो के सामने लम्बे समय तक नहीं टीक पाएगे. नसलवादियों को यह समझना होगा की इस तरह के नरसंहार कर के वो अपनी क्रांति को बदनाम और बर्बाद कर रहे है. असलियत में उनके दुश्मन कोई और है और वो गोली किसी और पर चला रहे है.
माननीय गृहमंत्री जी को भी यह समझना होगा की खून की राजनीती से आदिवासियों का विश्वास नहीं जीता जा पाएगा और न ही वहां का विकास किया जा सकेगा. अभी उनको दोनों तरह ही देखना चाहिए की इन पिछड़े इलाको का सतत विकास भी होता रहे और इन क्षेत्रो में कानून व्यवस्था भी कायम की जा सके. गृहमंत्री जी को कुछ त्वरित कदम उठाने चाहिए जिससे आदिवासी इलाको सरकार पर विश्वाश बढ़ सके, जैसे की जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा किया जाये, इन इलाको में प्राइवेट कंपनियों के अनुबंध तुरंत ख़तम किये जाये जो वहां के लोकल लोगो के हित में नहीं है.
मेरा सिर्फ एक ही मत है की जिसने गलत किया उसको सजा मिले वो चाहे नस्सलवादी हो या भ्रष्ट सिस्टम का कोई कर्मचारी. इस बड़ी समस्या का हल आपसी विश्वास से ही निकल सकता है न की एक दूसरे पर बन्दूक तन कर के.
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