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नस्सलवाद का दूरगामी हल – कल आज और कल

विचार भूमि
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दंतेवाडा की मार्मिक दुर्घटना के बाद सारा देश स्तब्ध है. ये एक ऐसी घटना है जिसने सारे देश को झखझोर कर रख दिया है. चुकी “CRPF” की कमान गृहमंत्रालय के अंतर्गत आती है, कल ही पी चिदंबरम जी ने अपने इस्तीफे की पेशकश प्रधानमंत्री जी के सामने पेश करी. मै भले ही ऑपरेशन ग्रीन हंट को उनका एक गलत निर्णय मानता हूँ लेकिन फिर भी मेरा मानना है की वो एक साफ़ सुथरे और इमानदार राजनीतिज्ञ है, और इन कठिन परिस्तिथियों में उनका अपने पद पर बने रहना आवश्यक है.

मेरे एक पाठक मित्र “चंद्रशेखर” जी ने मेरे लेख के आधार पर आग्रह किया कि नस्सलवाद से निपटने का, आप क्या हल निकालेगे. मुझे उनका सुझाव सही लगा. मैने अपने कई लेख ऑपरेशन ग्रीन हंट और इससे होने वाले नुकसान पर लिखे है तो ये मेरा नैतिक कर्त्तव्य भी है कि अगर मै ऑपरेशन ग्रीन हंट से सहमत नहीं हूँ तो फिर मेरा फ़ॉर्मूला क्या होगा एक इतनी बड़ी समस्या का हल निकालने का.

कहते है की किसी भी मर्ज का इलाज ढूँढने से पहले हमें ये पता लगाना जरूरी होता है की वो मर्ज क्यों है और क्या है. मेरा ये लेख नस्सलवाद क्यों है, नस्सलवाद क्या है और इसे कैसे ख़तम किया जा सकता है, पर आधारित है.

नस्सलवाद क्यों है: वैसे तो नस्सलवाद तरह-तरह के रूप में भारत के इतिहास में अपनी उपस्थिति लिए हुए है, लेकिन अगर हम आज के नस्सलवाद को देखे तो इसके बीज, भारत के आजाद होते ही पड़ने शुरू हो गए थे. यह वह समय था जब भारत ने आज़ादी का सवेरा देखा था. देश को खुद को आगे बढ़ने और सारी दुनिया के सामने खड़ा रहेने के लिए नए-नए संसाधनों की आवश्यकता थी. देश में खाद्यान की जरूरत तो देश के बड़े हिस्से से पूरी हो जाती थी लेकिन देश के पास खनीज की जरूरत पूरा करने के लिए मध्य भारत और उत्तर पूर्व ही था (आज का झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उडीसा और उत्तरी आंध्र प्रदेश). ये वो इलाके थे जहाँ कोयला, इस्पात, जस्ता, लकड़ी प्रचुर मात्रा में थे. यही से शुरू होती है इन इलाको के दोहन, शोषण और संघर्ष की कहानी. यहाँ वो सब संसाधन थे जिनके दोहन के लिए पहले तो सरकारी कंपनियों ने इन इलाको को अपने कब्जे में ले लिया और फिर निजीकारण के दौर में इन इलाको पर बड़ी बड़ी निजी कंपनियों ने अधिकार कर लिया. खनीज सम्पदा के दोहन के लिए यहाँ बड़े स्तर पर जबरदस्ती विस्थापन कराया गया. वो लोग जो पुश्तो से इन जगहों पर रह रहे थे उनको कभी कौड़ी के मोल दे कर और कभी जबरदस्ती अपने घर से बेदखल कर दिया गया. इन इलाको में काम करने वाली सारी बड़ी कंपनियों को यहाँ का सिर्फ खनिज दिखा लेकिन वो लोग नहीं दिखे जो अब तक यहाँ रहा करते थे. खनिज संसाधनों के बे-तरतीब दोहन और वहां के लोकल लोगो की उपेक्षा से ये इलाके बुरी तरह से पिछड़ते चले गए, और एक वक़त ऐसा आया कि इन इलाको को भुखमरी, बीमारी और अशिक्षा ने पूरी तरह से जकड लिया.

नस्सलवाद क्या है: लगातार होते विस्थापन, भूख, बेरोजगारी और बीमारी से त्रस्त यहाँ के आदिवासी और पिछड़े लोग, सहायता के लिए बार बार सरकार से मदद के लिए पुकारते रहे. कुछ साहसी लोग, इन कंपनियों के खिलाफ पुलिस के पास भी गए, लेकिन वहां भी उनको तिरस्कार मिला. शिकायत ले जाने वालो को ही, सरकारी काम में दखल देने के आरोप में जेल में डाला जाने लगा और जयादा विरोध करने वालो को गायब कर के मरवा दिया जाने लगा. क्योंकि ये लोग पूरी तरह से निर्बल और अशिक्षित लोग थे, इनके घर की बेटियों का शारीरिक और मानसिक शोषण इन इलाको में एक आम बात हो चली थी. जो भी सरकारी अधिकारी इन इलाको में भेजे जाते वो या तो बिक जाते, जो नहीं बिकते उनका या तो वापस ट्रानस्फर करवा दिया जाता या फिर उनके साथ भी वही सुलूक होता जो इन आदिवासियों के साथ होता था. नस्सलवाद एक क्रांति के तौर पर इन निर्बल लोगो को उनका अधिकार दिलाने के लिए शुरू किया गया था. ये क्रांति, बरसो से बंजर पड़ी बंजर जमीन पर बारिश की पहली बूँद की तरह वहां आयी. इन इलाको में इस क्रांति को बड़ा समर्थन मिलने लगा, अपने शुरुआती दौर में इस क्रांति ने इन आदिवासियों के लिए उनके हक की लड़ाई लड़ी. लेकिन धीरे धीरे इन इलाको में बढती असमानता और पुलिस के दबाव में, इन क्रांतिकारियों को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया. पहले ये बहुत ही छोटे स्तर पर शुरू हुआ जब आदिवासीयो ने अपनी जमीने वापस पाने के लिए, या अपने ऊपर हुए पुलिसिया/माफिया अत्याचार के खिलाफ देसी हथियारों से जवाबी हमले करने शुरू किये. तभी कुछ मुठ्ठी भर लोगो ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, इन लोगो में पूरे सिस्टम के खिलाफ ही जहर घोलना शुरू कर दिया. अपने भले के लिए इन मुठठी भर लोगो ने, सफेदपोश लोगो के साथ मिलकर, नस्सलवाद का पूरा खाका ही बदल डाला. यह आज इस हद तक पहुच गया है जिसके बल पर नस्सलवादी विदेशी हथियारों के द्वारा सुरक्षाबालो पर हमला बोल पा रहे है.

नस्सलवाद का खातमा: देश कि प्रधानमंत्री जी ने कई अवसरो पर कहा है कि नस्सलवाद भारत कि आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है. उनके इस विचार का कारण भी साफ़ है, नस्सलवाद इस लिए खतरनाक है क्योंकि इसको कही न कही लोकल स्तर पर जनता का समर्थन मिलता है. नस्सल्वादियो की पकड़ आदिवासी क्षेत्रो में कितनी है, आप इस बात का अंदाजा इससे ही लगा सकते है कि दंतेवाडा में हमला करने वाले अनुमानित नस्सलियो कि संख्या १००० के आस पास थी. मै नस्सलवाद की समस्या को एक सामाजिक समस्या मानता हूँ, और मै नस्सलवाद के खात्मे पर बिन्दुवत हल देना चाहूँगा. पहले तो कुछ सामाजिक सुझाव है और फिर सैनिक:-

१ – सब से पहले तो सरकार को बिना कोई शर्त ऑपरेशन ग्रीन हंट रोकना चाहिए. सरकार को यह बताना चाहिए की ये रोक किसी दबाव मे नहीं बल्कि आदिवासियों के भले के लिए लगाई गई है. इस एक तरफा रोक से नस्सलवादी इलाको में ये सन्देश जायेगा कि सरकार बेकार का खून खराबा नहीं चाहती है.

२ – जेलों में बंद सभी निर्दोष आदिवासी और गरीब लोगो को बिना किसी पूर्वाग्रह के छोड़ा जाये.

३ – वो सभी करार जो प्राइवेट और सरकारी कंपनियों के साथ है रद्द किये जाये, जिनका वहां के लोकल आदिवासी लोग विरोध कर रहे है.

४ – उन सभी लोगो के खिलाफ तुरंत करवाई करी जाये जिन लोगो ने अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए इन आदिवासियों पर अत्याचार करे.

५ – हर नस्सल प्रभावित गाव से एक एक आदमी अपने गाव की तरफ से सीधे केंद्रीय मंत्री या मुख्यमंत्री के पास आ कर अपनी समस्ये बताये और यथा-शीघ्र उन समस्याओ पर करवाई हो.

६ – सरकार को योजना आयोग कि त्वरित एक्शन कमेटी बननी चाहिए जो एक निश्चित समयावधि में सरकार को बताये कि इन इलाको का त्वरित विकास कैसे किया जा सके.

इन सामाजिक उथान और न्याय के प्रयासों के सामानांतर हमें नीचे दिए गए सैनिक प्रयास भी जरी रखने चाहिए. यह प्रयास उस समय देश की सेना के काम आयेगे जब देश के दुश्मन सभी सार्थक प्रयास करने के बाद भी हथियार छोड़ने को तैयार न हो.

७ – वहां के लोकल लोगो के सुरक्षाबालो में भारती किया जाये. इस तरह का प्रयोग जम्मू और कश्मीर हो काफी हद तक सफल रहा है. इस प्रयोग से एक तो इन लोगो में सुरक्षा और विश्वास की भावना जगेगी और ये वो लोग होगे जो इन इलाको से चप्पे चप्पे से वाकिफ है और विषम परिस्थितियों में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है.

८ – वो सभी रस्ते जो नस्सलवादियो को हथियार और बारूद पहुचाते है, उनको पूरी क्षमता से रोका जाये वो चाहे नेपाल के रास्ते से हो बंगलादेश या म्याम्यर के रास्ते.

९ – जब एक तरफ सरकार जब इन पिछड़े इलाको में विकास पर काम करे तो दूसरी तरफ सुरक्षा एजेंसियां इन इलाको में अपना मजबूत ख़ुफ़िया नेटवर्क तैयार करना चाहिए.

१० – जंगल में लड़ने के लिए सैनिको को कम से कम ३ महीने की ट्रेनिंग दी जाये और उनको अत्याधुनिक अथियारो से लैस किया जाये.

११ – ये जानने के लिए की हथियार बंद नस्सली किस इलाके में है इसके लिए उच्च तकनीति वाले मानवरहित विमानों का इस्तेमाल किया जाये. इन मानव रहित विमानों से प्राप्त जानकारी के अधर पर ही सुरक्षा अजेंसिया अपनी रणनीति तय करे.

१२ – नस्सल्वादियो के शीर्ष नेतृत्व पर बराबर से निगरानी रक्खी जाये और जब हमला आवश्यक हो तो सारी रणनीति इस बात पर केन्द्रित हो की कैसे शीर्ष नेतृत्व को काबू किया जाये.

१३ – नस्सल्वादियो के आर्थिक मदद के सारे रास्ते सरकार बंद करे.

मेरे विचार से इन १३ सूत्रीय प्लान के आधार पर सरकार नस्सल्वाद को जड़ से ख़तम कर सकती है. इस तरह की कार्यनीति और रणनीति इन

इलाके में आदिवासियों को फिर से उनका हक और उनको न्याय दिलायेगी और उनके अन्दर सिस्टम के लिए फिर से विश्वास पैदा करेगी. हमको ये समझाना ही होगा जिस दिन हम इन इलाके में रहने वाले लोगो में यह विश्वास पैदा कर पाए की ये सरकार और सिस्टम उनके भले के लिए है, तो नस्सल्वाद यहाँ अपने आप सिमट जायेगा. सरकार को बिना किसी झिझक के पूरी इक्षाशक्ति के साथ पहले इन लोगो और इन इलाको के भले के लिए हाथ बढ़ने चाहिए और साथ ही साथ अपनी सैनिक तैयारियां भी करनी चाहिए जिससे की जब युद्ध अपरिहार्य हो तो कम से कम नुकसान और समय में हमारे सुरक्षबल देश के दुश्मनों को उनके घुटने टेकने पर मजबूर कर सके…

माफ़ी चाहूँगा अगर लेख अधिक बड़ा है लेकिन यह समस्या ही इतनी बड़ी है की मै इसको छोटे लेख में समाहित नहीं कर पाया.

गीता की इन पंक्तियों के साथ खतम करना चाहूँगा…

परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुश्क्रताम…

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