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भूखे लोग और सड़ता अनाज

विचार भूमि
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भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह एक ऐसा देश है जो दुनिया में दूसरा स्थान रखता है कृषि उत्पादन के क्षेत्र में. भारत की लगभग ५२ से ५५ % जनसँख्या कृषि कार्य से अपनी जीविका चलाती है. यह एक ऐसा देश है जिसके कृषि उत्पादको की पहुच दुनिया के लगभग हर कोने में है. भारत के कृषि उत्पाद दुनिया में कितना असर डालते है वह इस बात से ही पता चलता है की, लगभग २ साल पहले ही दुनिया के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली देश “अमेरिका” के तत्कालीन राष्ट्रपति “जार्ज बुश”ने कहा था की दुनिया में अनाज की किल्लत इसलिए हो रही है क्योंकि भारत में मध्यम वर्ग अभी अधिक संपन हो गया है. उनकी चिंता का मूल कारण यह नहीं था की भारत की जनता अधिक संपन हो कर अपने खाने पर जायदा व्यय करने लगी है, बल्कि उनकी चिंता का कारण यह था की इस वजह से भारत अभी पहले से कम अनाज दुनिया को निर्यात करता है.

वह देश, जो दुनिया के बड़े-बड़े देशो को रोटी मुहैया कराने में मद्दद करता है, उसी देश के कई इलाको में आदमी भूख से मरता है. यही इस देश का स्याह पहलू भी है कि, विश्व में दूसरी सबसे तेजी बढती अर्थव्वस्था होने के बावजूद, देश अपने ही लोगो को दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहा है. वैसे तो हमको सारे देश में ऐसे लोग मिल जायेगे जो दो वक्त की रोटी के लिए, एक मौसम में तो अपने खून को पसीना बनाकर जलाते है तो दूसरे मौसम इसी रोटी के लिए अपना खून जमाते है. वैसे तो अपने हिस्से की रोटी के लिए सबको मेहनत करनी पड़ती है लेकिन सिर्फ जिन्दा रहने के लिए इतनी मशक्त कही न कही “Incredible India” के लिए एक सवाल छोड़ जाती है.

यहाँ एक तरफ तो ऐसे लोगो की भरमार है जिनको सिर्फ जिन्दा रहने के लिए कुछ भी करना पड़ता है लेकिन दूसरी तरफ सरकारी और गैर सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता है. हर साल देश में हजारो टन अनाज सड़ता जाता है और गरीब लोगो तक नहीं पहुच पाता है. झारखण्ड, उडीसा, छतीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश में न जाने कितने ही जिले भुखमरी की मार झेल रहे है. यहाँ कई इलाको में लोग रोटी के लिए ही एक दुसरे का खून बहाने को भी तैयार है. चुकी इन क्षेत्रो में इन्सान की पहली जरूरत, “रोटी” का ही इंतजाम नहीं हो पाता है, यहाँ किसी और तरह के विकास की बात करना बेईमानी ही होगी.

वैसे तो सरकार ने कुछ अरसा पहले देश में खाद्य सुरक्षा कानून पास किया था, लेकिन किसी भी और सरकारी नीति की तरह इस कानून का भी कोई बहुत अच्छा हाल नहीं है. सब को पाता है, कही-कही अनाज के गोदाम तो खाली हो जाते है लेकिन वो अनाज गरीबो तक न पहुच कर सरकारी बाबुओ, अधिकारियो और नेताओ के घर के “AC”, “LCD TV” या “Flat” बन जाते है. इन भ्रष्ट लोगो के खिलाफ कानून भी कुछ ऐसे चलता है कि भूखे लोगो की एक पीढ़ी ख़तम होने के बाद दूसरी पीढ़ी जिन्दगी से लड़ने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन कानून दोषी लोगो को सजा नहीं दे पाता है.

कुछ इमानदार नेताओ ने इस तरफ अच्छी पहल भी करी है जैसे छतीसगढ़ में वहां के मुख्यमंत्री Dr. रमन सिंह जी ने. इन्होने गरीबो को कम से कम कीमत पर अनाज मुहैया करना शुरू किया है. उनकी इस पहल का कई और राज्यों ने स्वागत किया है और दुसरे राज्यों में भी इस तरह की योजनाये शुरू की गई है.अभी यह देखना बाकी है कि बाकी राज्यों में यह कितना सफल होता है. सरकारों और उनके नुमानिन्दो को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश का अनाज सड़ने या चूहों का निवाला बनने के बजाये देश की गरीब से गरीब लोगो तक पहुचे.

मै सभी राजनीतिक दलों से अपील करना चाहूँगा कि भुखमरी की समस्या को सिर्फ चुनावी मुद्दा न बनाकर, ईमानदारी से इस समस्या को हल करने का प्रयास करे. देश में कोई भी बदलाव बिना वहां के लोगो के समर्थन के बिना नहीं हो सकता है, लोगो को समझाना होगा की कही भी अगर कुछ गलत हो रहा है तो हमें उसके खिलाफ एक जुट हो कर आवाज उठानी चाहिए.

अंत में यही लिखना चाहूँगा कि..

भारत किसी भी बरबादी के लिए तैयार नहीं है और हम सब को यही कोशिश करनी चाहिए कि जरूरी चीजें जरूतमंद लोगो को बिना किसी बरबादी के पहुच सके.

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