Menu
blogid : 1336 postid : 225

पानी पानी रे…

विचार भूमि
विचार भूमि
  • 49 Posts
  • 463 Comments

रहिमन पानी राखिये पानी बिन सब सून

पानी गए न उबरे मोती, मानुस, चूर

आज से सैकड़ो साल पहले जब रहीम दास जी ने यह दोहा लिखा होगा, तो निश्चित ही इस दोहे के माध्यम से उन्होंने समाज को यह समझाने की कोशिश करी होगी कि पानी की मानव जीवन में कितनी महत्ता है. अगर इतिहास पर नज़र डाले तो पता चलता है की विश्व की सारी प्राचीन सभ्यताए नदियों के इर्द गिर्द ही पाई गई है. जब भी किसी प्राकर्तिक या मानवीय कारण से नदियों की दिशा या दशा में कोई बदलाव आया है तो इसके बहुत ही गंभीर परिणाम पूरी सभ्यता को उठाने पड़े है. इतिहासकार कहते है की भारत में अर्यो का आगमन मध्य-पूर्व एशिया से इरान – अफगानिस्तान के रास्ते हिंदुस्तान में हुआ है. इस महा पलायन का एक बहुत बड़ा कारण अर्यो के मूल स्थान में प्राकर्तिक बदलाव और पानी की कमी ही था. कहने का तात्पर्य अभी भी यही है की “पानी गए न उबरे मोती, मानुस, चून”.

आर्य ही भारतवर्ष में एक नई जीवन पद्धति लाये. जिस जीवन पद्धति में धरम का एक बहुत ऊँचा स्थान था. मै मानता हूँ हमारे पूर्वज बड़े ही बुद्धिमान थे. उनको कोई भी अच्छी बात या आदत लोगो में लानी होती थी तो वह उसको धर्म से जोड़ देते थे. वह चाहे नदियों को “माँ” कहा के पूजने की हो, या “वन” और “वृक्षों” को देवता मान कर मान देने की. अगर आप देखेगे तो पाएगे पूरा हिन्दू धर्म ही प्राकर्तिक संसाधनों की वंदना करता आया है. मै मानता हूँ ऐसा इस लिए होगा कि, हमारे पूर्वजों ने ऐसा देखा होगा कि प्रकर्ति के साथ छेड़छाड़ करने का क्या परिणाम हो होता है. वो सकता है, प्राकर्तिक संसाधनों (जल, थल, वन) का अनियमित दोहन ही अर्यो के महा पलायन का मूल कारण रहा हो.

क्योंकी भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश की फसलें, भारतीय महादीप के मानसून पर खतरनाक स्तर पर निर्भर है. जिस वर्ष देश में मानसून देर से आता है या वर्षा कम होती है, इसका सब से बुरा असर देश के सबसे गरीब किसानो और जनता पर होता है. मानसून पर कृषि की निर्भरता कम करने के लिए, भारत सरकार ने तरह तरह की योजनाये बनायीं है. लेकिन परिणाम उतने उत्साह जनक नहीं है जितनी उम्मीद करी जा रही थी. पिछले वर्ष ही, कम बारिश की वजह से देश ने ऐतिहासिक महगाई की मार झेली. वैसे तो इस महगाई के कई और वजहें भी थे लेकिन वर्षा की कमी भी इसका एक बड़ा कारण थी.

भारतवर्ष वर्षा के देवता “इन्द्र” कि पूजा करता है, बारिश भारत में एक ख़ुशी का वातावरण लाती है. शायद ही ऐसी कोई आंखे होंगी हो जो गर्मी की किसी शाम को असमान में काले बदलो कि राह न तकती हो. किसी भी इलाके पहली बारिश एक उत्सव कि तरह होती है, सारी धरा बस साराबोर होने को आतुर रहती है. पहली बारिश, जिन्दगी खोते पेड़-पौधों में एक नया जीवन संचार कर जाती है. वह पेड़-पौधे जो जीवन की आस खो चुके होते है, पहली बारिश के बाद ही, फिर हरे और जीवन से भर जाते है. और यही पहली बारिश इंसानों के चहरे पर एक मुस्कराहट और संतोष छोड़ जाती है, इस सन्देश के साथ की “बरसात आ गई है”.

वही “बरसात का पानी” जिसका हर जीव-जंतु और पेड़-पौधों को इतनी बेसब्री से इंतजार रहता है, वह हर बरसात में गंदे नालो से होता हुआ, कुछ जिन्दगी खो देने के कगार पर कड़ी नदियों में गिर कर असीम सागर में “खारा” हो जाता है. वह जीवन तत्त्व किसके बिना किसी भी तरह के जीवन की कल्पना करना बेईमानी होगी, उसको हम बस ऐसे ही बर्बाद हो जाने देते है. और एक बार बरसात ख़तम होने के बाद, फिर से पानी के लिए झगड़ने, लड़ने और तरसने लगते है. यही भारतवर्ष के इन्सान और पानी के संबंधो का जीवन चक्र है.

एक ही मौसम में भारत, एक तरफ बिहार के कोसी और असम के निचले इलाको में बाढ़ की मार झेलता है, वही दूसरी तरह देश का बड़ा भाग सूखे से जूझता है. सरकार देश में पानी की कमी को दूर करने के लिए, वर्षा जल संरक्षण को एक अच्छा विकल्प समझती है वही मेरे विचार से यह एक विकल्प नहीं, बल्कि एक परम आवश्यक कदम है जो सरकार को हर हाल में उठाना चाहिए. अगर इसके लिए देश में किसी नए कानून की जरूरत पड़े तो वह भी बनाना चाहिए और उसका कडाई से पालन करवाना चाहिए. और यह सब इसलिए होना चाहिए क्योंकी पानी एक विकल्प नहीं बल्कि एक परम आवश्यक तत्त्व है जीवन के लिए.

देश में पानी की असमानता को दूर करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर मैं, “अटल बिहारी वाजपेयी जी” की उस महत्वकांक्षी योजना का समर्थन करता हूँ, जो उन्होंने देश की नदियों को जोड़ने के लिए बनाई थी. मेरे विचार से यह भारत का वर्तमान और भविष्य बदलने वाली योजना साबित होती. इस योजन से एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ सूखे की स्थति से निपटा जा सकता था. लेकिन मौजूदा सरकार इससे सहमत नहीं है, वह बात अलग है की उनके पास न तो इससे बेहतर कोई विकल्प है और न साधन.

मै देश की योजनाये तो नहीं बना सकता हूँ जल संरक्षण को लेकर लेकिन कुछ सुझाव जरूर दे सकता हूँ, जल और जीवन को बचने के लिए:-

१ – पानी की अनावश्यक बर्बादी को रोके, जहाँ कही भी ख़राब नल या पम्प जिससे हमेशा पानी बहता हो उसको सही करवाए या सही करवाने के लिए उचित आदमी से संपर्क करे.

२ – नया घर या फ्लैट खरीदते समय, बिल्डर से जांचे की, वर्षा जल संरक्षण के वहां क्या उपाय है.

३ – पानी पीने के लिए “गाँधी जी” का फ़ॉर्मूला अपनाये. कि जितना पानी पीना हो ग्लास में सिर्फ उतना ही पानी ले, बजाये इसके कि आधा ग्लास पानी पी कर आप आधा फ़ेक दे.

४ – अगर बाथरूम में शावर कि व्यवस्था हो तो उसका उपयोग करे. क्यों कि “शावर” में किये स्नान में परंपरागत तरह से किये गए से ५०% तक कम पानी का इस्तमाल होता है.

५ – अपनी गाड़ी धुलने के लिए बाल्टी के बजाये, या तो पाईप कि धार का इस्तेमाल करे या दुकान पर ले जा कर धुलवाए.

६ – किसी तीरथ स्थल के तालाब/सरोवर या किसी भी नदी में स्नान करे तो, साबुन का प्रयोग मत करे. यह जल को विषैला बनता है.

७ – सब से जरूरी, ऐसा कोई भी तरीका अपनए अपने जीवन में, जो पानी को बर्बाद होने से रोके.

इस लेख को यही ख़तम करना चाहूँगा, इस सन्देश के साथ कि सरकार कि कोई भी योजना, कानून और नीति तब-तक सफल नहीं हो सकती जब तक सारा देश और देश के आम लोग इससे अपने आप को नहीं जोड़ते.

जय हिंद.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh