“मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यो ज्यो दवा की…” मोमिन खान मोमिन की ये पंक्तियाँ, लोकतान्त्रिक भारत के आज के परिपेक्ष्य में बिलकुल फिट बैठती है. सारा भारत जैसे दो तरह के जूनून में डूबा जा रहा है, एक तरफ जहाँ एक तबका भ्रष्ट सिस्टम से लड़ने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहा है वही दूसरी तरफ दूसरा तबका भष्ट विचारो को आगे बढाता हुआ, भ्रष्ट व्यव्हार के साथ पूरी तन्मयता से भ्रष्टाचार करने में लगा हुआ है. भ्रष्टाचार को रोकने के लिए, सरकार जितने ही नए-नए आयोग और कानून पास कर रही है, रोज उतनी ही नयी ही सीमाए टूटती जा रही है, भ्रष्टाचार की.
शायद ही ऐसा कोई महिना – हफ्ता बीतता होगा जब घोटालो का कोई नया जिन्न देश के सामने न आता हो. महान अर्थशास्त्री “मनमोहन” जी और ममतामयी “सोनिया” जी, दोनों ने ही जैसे यथास्थिति से आंखे फेर ली हो. बड़ा सरल उपाय है “UPA” सरकार के पास अपने आप को नित नए होते घोटालो से अलग कर लेने का. कोई भी मंत्री या नेता अगर भ्रष्टाचार में पकड़ा जाता है तो थोड़ी न-नुकर, मान-मनुअल कर के उससे इतीफा मांग लिया जाता है, और इसी के साथ सरकार और नेता जी के बड़े-बड़े घोटाले दब जाते है.
जनता और मीडिया भी बेचारी क्या करे जब वो एक घोटाले पर ध्यान केन्द्रित करते है तब कुछ कोई नया घोटाला देश के सामने आ जाता है. कुछ दिन पहले ही जब सरकार के वरिष्ठ मंत्रियो के लाडले या पुत्रवत मंत्री “ए. राजा” का भ्रष्टाचार का खाता जब जनता के सामने खुला, देश कई दिन तक गिन नहीं पाया की पौने दो लाख करोड़ में कितने शून्य लगेगे ( देश की जानकारी के लिए ७६३९०००००००००). यह कांड तब हुआ है जिसके बारे में मीडिया और जनता पिछले दो साल से सरकार को आगाह कर रही है. महान दबावों के बाद, एक इतने बड़े भ्रष्टाचारी की सजा सरकार ने क्या तय करी, कि “राजा जी” से इस्तीफ़ा मांग लिया जाये. इतीफा मांगने के बाद शायद “प्रधानमंत्री” जी आत्मग्लानी महसूस कर रहे थे इसी लिए मौका मिलते ही सदन में राजा जी की पीठ थपथपा दी. मेरी आत्मा ये मानने के तैयार नहीं होती की “मनमोहन” जी सीधे इस कांड से कही जुड़े होगे लेकिन उनकी इतनी बेचारगी, देश के लिए असहनीय होती जा रही है. वही दूसरी तरफ सीबीआई “CWG” के घोटालो पर से धीरे धीरे पर्दा हटा रही है “कलमाड़ी जी” जनता के पैसे पर यूरोप घूम रहे है. हो सकता है की उनको एक पूर्व निर्धारित प्लान के तहत भारत से बाहर रखा गया हो जिससे की अगर उनकी गिरफ़्तारी की नौबत आये तो उनको बचाया जा सके. देश भर में जलसा जा निकला हुआ है बेईमानी का, दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक, महाराष्ट्र से कर्नाटक तक और फिर भारत के सीमान्त प्रदेश तमिलनाडू तक.
ऐसा सिस्टम जहाँ “रतन टाटा” और “बाबा रामदेव” जैसे लोगो को भी अपने काम के लिए रिश्वत देनी पड़े, देश की दशा बताने के लिए इतना काफी है. मेरा निवेदन होगा इनके जैसे समाज को दिशा देने वाले लोगो से की, राष्ट्रहित में, ये लोग उन नेताओ के नाम सार्वजनिक करे, जिन्होंने इनसे रिश्वत मांगी थी. वह बात अलग है की नाम जान कर भी देश की जनता और कानून इन भ्रष्टाचारियो का कुछ नहीं कर पाएगे लेकिन अपने आस्तीन के सांप की लम्बाई और प्रजाति जानने का हक तो देश का बनता ही है.
भारत में भष्टाचार बड़ा सीधा सा व्यापार है, आप करोडो अरबो रुपयों का गबन करो और और आप को जयादा से जयादा अपने पद से बर्खास्त होना पड़ेगा और फिर बाकि जिन्दगी आराम से जियो. हो सकता है आप को महीने – चार महीने के लिए जेल जानी पड़े लेकिन उसके लिए भी आप पैसा खर्च कर के सारे ऐशो आराम, आप जेल में पा सकते है. सोचने का प्रश्न है, भ्रष्टाचार के लिए एक ऐसा कानून जो ६० साल पहले बनाया गया था, वह कानून बेचार कब तक सजा दिला पायेगा इन महान विद्वान् और समर्थशाली भ्रष्ट नेताओ को.
उम्मीद पर दुनिया कायम है, चलते चलते इस लेख को आशावाद के साथ ख़तम करना चाहूँगा. हार्दिक बधाई, बिहार के मुख्यमत्री “नितीश कुमार” जी को, जिनकी अगुआई में बिहार ने विकास और सुशासन का सपना देखा और उसको जीने की कोशिश करी. चुकी बिहार की समस्या सब से जटिल थी, बिहार का यह परिणाम भी सबसे निराला है. यह देश के नेताओ और जनता के लिए नाज़ीर है, की जब १५ साल तक, बाकि देश से पिछडने के बाद भी बिहार सुशासन और विकास के लिए सारी सीमओं को तोड़ने के लिए तैयार है तो देश का कोई भी राज्य, कोई भी जनपद अपने आप को बदल सकता है, “अगर वहां के रहने वाले आपने आप को बदलने को तैयार है”. यह नतीजे सबक है लालू और रामविलास पासवान जैसे नेताओ के लिए, जिन्होंने राजनीत और राजकर्म को अपना और अपने परिवार की जागीर मान ली और एक संभ्रांत प्रदेश को अंधकार के गर्त में जा डुबोया.
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