कुछ लोगो को ऐसा लगता है कि लोग उनसे नफरत करे या मोहबत लेकिन उनकी अनदेखी न करे. हमारे दिग्गी राजा भी इसी समस्या से ग्रसित है. दिग्गी राजा जिन्हें आम जन मानस दिग्विजय सिंह के नाम से जनता है. इन्होने एक नया शिगूफा छोड़ा है कि मुंबई हमले में शहीद करकरे जी ने अपनी शहादत के कुछ घंटे पहले, इनसे अपने दिल कि बात कही थी कि “हमको हिन्दू अतिवादियो से खतरा है”. सारे देश के दिमाग में एक ही सवाल आ रहा है कि आखिर करकरे जी, दिग्विजय सिंह को क्यों फ़ोन करेगे? वो न तो प्रधान मंत्री थे, न तो गृह मंत्री और न ही किसी सरकारी पद पर आसीन, जो वह करकरे जी की किसी समस्या को हल कर पाते. सोचने वाले बात यह है की, सुरक्षा एजेंसियां भी इस कॉल का कोई बेयोरा नहीं निकल पा रही है, अब या तो दिग्विजय जी झूठ बोल रहे है या हमारी सुरक्षा एजेंसिया सही से काम नहीं कर रही हैं.
वास्तव में समस्या करकरे जी के साथ नहीं थी और न ही सुरक्षा एजेंसिया के साथ है, बल्कि समस्या हमारे नेता जी के साथ में है. एक ऐसा इन्सान जिसने देश के सबसे बड़े प्रदेश पर १० सालो तक राज किया वह देश की राजनीतिक कतार में अपने आप को सब से पीछे खड़ा नहीं देख पा रहा है. पिछले कई सालो में, अपने अस्त होते राजनीतिक सूरज को लोगो कि नज़रो में लाने के लिए नेता जी कुछ न कुछ ऐसा बोलते रहते है जिससे वह लोगो की नज़र में तो आ जाते है लेकिन अच्छी वजहों से नहीं. इससे पहले वो बटाला हाउस मुटभेड के बारे में बोले थे फिर उन्होंने आजमगढ़ के बारे में अपने विचार रखे थे. पता नहीं, लेकिन शायद वो आम भारतीय मुस्लमान को समझ नहीं पा रहे है, उनकी सोच कहती है कि अगर वो अतंकवादियो की हिमायत करेगे तो वो अपने मुस्लिम वोट बैंक को साध पाएगे और पार्टी में उनकी स्थिति मजबूत होगी.
सच तो यह है, मैंने दिग्विजय सिंह को कभी मुसलमानों की असली समस्यों के लिए लड़ते नहीं देखा, लेकिन जब देश के सिपाही किसी आतंकवादी को मारते है तो दिग्विजय सिंह जी उन सबसे पहले राजनेताओ में होते है जो वोट बैंक की राजनीती शुरू करते है. यह कितने कर्मठ और अल्पसंख्यक हितैषी नेता थे, इनके वक़्त का भोपाल और मध्यप्रदेश इसका साक्षी रहा है. यह उन नेताओ में से है जिनको न तो मुस्लिम विकास से कोई मतलब है और न ही मुस्लमान लोगो की सुरक्षा से. ये “सोहराबुदीन” के लिए तो संसद बंद कर सकते है लेकिन ये एक आम मुस्लमान को बचाने या आगे बढ़ने के लिए कभी नहीं आगे आयेगे.
दुर्भाग्य से, यह देश पर शासन कर रही राजनीतिक पार्टी के महासचिव है और इनकी द्वारा कही हुई कोई भी बात का सरहद पार तक मतलब होता है. मुंबई हमले के २ साल गुजर जाने के बाद भी भारत सरकार, पाकिस्तान के ऊपर इतना दबाव नहीं डाल पाई है कि वहां एक आदमी को भी सजा सुनाई जा सके और उस पर भी देश के एक राष्ट्रीय नेता का इस तरह का बयान, देश के कूटनीतिक प्रयासों को कमजोर ही करता है. विक्की लीक्स ने पहले ही उजागर किया है कि मुंबई हमलो का कुछ कांग्रेसी नेताओ ने राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास किया था लेकिन दिग्विजय सिंह जी ने शायद अभी भी हार नहीं मानी है. उनको अभी भी मुंबई हमले में वोट बैंक की राजनीती की गुंजाइश नज़र आती है.
देश तो बदल रहा है लेकिन नेताओ को बदलने में थोडा जयादा वक़्त लग रहा है. देश ने अपनी एकता मुंबई हमले से लेकर, अयोध्या के फैसले तक दिखाई लेकिन कुछ राजनैतिक लोग अभी भी फिरकापरस्ती में ही विश्वास रखते है. वो नेता जो वोट बैंक और धर्म की राजनीती करते है उनको बिहार की जनता और वहां के चुनाव परिणाम से सबक लेनी चाहिए. भले ही नितीश कुमार ने बाटल हाउस पर कुछ न कहा हो, भले ही इन्होने आजमगढ़ के कुछ अतंकवादियो के बारे में कुछ न कहा हो लेकिन बिहार की पूरी जनता वो चाहे हिन्दू हो या मुस्लमान, सब ने नितीश कुमार पर विश्वाश व्यक्त किया है.
हारे हुए नेताओ को, वो चाहे बिहार में लालू जी हो, यू पी में मुलायम जी या मध्यप्रदेश में दिग्विजय जी सब को यह सोचना होगा की जनता बदल रही है और बेहतर होगा की वह भी देश के साथ बदले और विकास की राजनीती करे न की विनाश की. अच्छा लगेगा देश को, अगर उन्हें सत्ता और विपक्ष दोनों जगह ही देश के विकास और देश को मजबूत करने वाले लोग दिखेगे न की तोड़ने और पीछे ले जाने वाले लोग. लोकतंत्र की यही ताकत है की अगर गलत लोग नहीं सुधारे तो जनता उनकी जगह किसी और को चुन लेगी. चुनाव नेताओ को करना है की उनको राजनीती में रहना है या राजीतिक अज्ञातवास में चले जाना है.
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