कलमाडी साहब के घर और दफ्तर पर छापा पड़ने के बाद हम जिस मुद्दे पर लिखने का सोच रहे थे, गडकरी साहब ने वो मुद्दा कल दिल्ली में उठा ही दिया. कुछ समय पहले ही कुछ राजनीतिक पार्टियों के लोगो ने कहा था कि सीबीआई का नाम “सेंट्रल बुयुरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन” से बदल कर “कांग्रेस बुयुरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन” कर देना चाहिए. इसे आप अभी “सेंट्रल बुयुरो” कहे या “कांग्रेस बुयुरो” कोई खास फर्क नहीं पड़ता , क्योंकी आम जनता की भाषा में यह एक सेंट्रल गवर्नमेंट की संस्था है जो सेंट्रल गवर्नमेंट के लिए काम करती है. चुकी देश में गैर कांग्रेसी सरकारों के साल उंगलियों पर गिने जा सकते है, तो बहुमत देखते हुए इसे “कांग्रेस बुयुरो” कहा जा सकता है.
यह वह जाँच संस्था है जो भारत में १९६३ में स्थापित हुई थी. इसका कार्यक्षेत्र निष्पक्षता के साथ भारतीय संविधान के अंतर्गत कुछ सबसे जटिल अपराधिक मामलो को हल करना था. सीबीआई ने अपने धेय्य में कहा है “Industry, Impartiality, Integrity” अर्थात निष्पक्षता, ईमानदारी और सत्यनिष्ठ के साथ भारत और भारतीयों के जीवन और उनके आर्थिक हितो की रक्षा. वैसे तो सीबीआई के इतिहास पर गर्व किया जा सकता है लेकिन इस जाँच एजेंसी की हमेशा से उन मामलो में दिक्कत रही है जहाँ कोई मामला केंद्र में राज कर रही किसी सरकार से या सरकार के किसी निकटम व्यक्ति से होता है.
अभी अगर हम देश के मौजूदा दो सबसे चर्चित घोटालो के बात करे, “CWG” और “२-G “, तो यहाँ पर भी सीबीआई की जाँच और जाँच के तरीके में “Industry, Impartiality, Integrity” का नितांत आभाव लगता है. एक मामूली सरकारी चोर भी घूस लेने के २४ घंटे के अन्दर अपनी चोरी को छुपाने का इंतजाम कर लेता है, तो CWG और २-G के महानतम चोरो की बात तो छोड़ ही दीजिये. सीबीआई पहले तो केंद्र के दबाव में चुप बैठी रही, जब उसके ही नाक के नीचे इतने बड़े-बड़े भ्रष्टाचार होते रहे. इसे मजबूरी में तब जगाया गया है जब केंद्र पर असीमित दबाव है आपने को पाक साफ़ साबित करने का.
हम इसमें सीबीआई का दोष उतना नहीं मानेगे क्योंकि वो तो केंद्र के अधीनस्थ एक संस्था है और वह शासन के खिलाफ नहीं जा सकती है. यह समझा जा सकता है जब आज से ६ महीने पहले सारा देश CWG के भ्रष्टाचार और २-३ साल पहले से ही २-G भ्रष्टाचार को भांप पा रहा था उस समय सीबीआई क्यों नहीं कुछ कर सकी. मेरे विचार से सीबीआई का कर्त्तव्य सिर्फ यह नहीं है की आप तब तक इंतजार करो जब तक अपराध हो न जाये, उनका कर्त्तव्य यह भी है की अगर कही इतने बड़े स्तर पर अपराध होने की संभावना है तो उसे रोका जाये.
सीबीआई के यह छापे यह पूछताछ सिर्फ खानापूर्ति अधिक लगते है. वो देश जहाँ १०० रूपये चुराने वाले को कभी जनता खुद मर मर के अधमरा कर देती है या उसे तुरंत जेल के अन्दर ठूंस दिया जाता है उसी देश में लाखो करोडो की हेरा फेरी करने वालो को पूरे मौके दिए जा रहे है की चोरी का पैसा सही जगह छुपाओ, सारे सबूत ख़तम करो, और फिर हम छापे और पूछताछ की करवाई करेगे. एक बात और गौर कने लायक है, कोई भी मामला हल कर लेने के बाद भी आज की कानून व्यवस्था के कारण सीबीआई दोषियों को उनके अंजाम तक नहीं पहुचा पाती है वो केस लोकल कोर्ट से होता हुआ, हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में ऐसा लटकता है कि दसियों साल लग जाते है न्याय आने में और न्याय पाने में.
आज के दौर की समस्याओ के देखते हुए हमें लगता है की सीबीआई को कुछ बड़े बदलाव की जरूरत है, जैसे की:-
१ – इसे केंद्र सरकार के बजाये सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में काम करना चाहिए.
२ – सीबीआई के मामले सीधे सुप्रीम कोर्ट में लड़े जाने चाहिए.
३- सीबीआई की एक जवाबदेही तय होनी चाहिए वो कोई मामला जीते या हारे.
४ – सीबीआई को सिर्फ उसकी गरिमा के हिसाब से मामले मिलने चाहिए.
५ – इसे राजनीतिक हथियार के रूप में नही इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
..इत्यादि
सीबीआई वह संस्था है जिसके ऊपर देश का विश्वास टिका है, सीबीआई वह संस्था है जो निष्पक्ष जाँच और निष्पक्ष न्याय के लिए बनायीं गई थी. यह किसी भी राजनीतिक दल या केंद्र सरकार की कठपुतली नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगर सीबीआई अन्याय से हारती है तो इसका मतलब है देश अन्याय से हारता है.
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