आज सुबह ही एक खबर आयी की देश के १४ सफलतम व्यक्तियों ने प्रधानमंत्री जी को एक चिठ्ठी लिखी है. यह वो लोग है जिनका देश के विकास में बहुत बड़ा हाथ है, और यह वो लोग भी है जो कभी न कभी डाक्टर मनमोहन जी के करीबी रहे है. इन लोगो ने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया की वो देश की भीषणतम समस्या “भ्रष्टाचार” के खिलाफ कुछ कारगर उपाय करे.
प्रधानमंत्री जी का भ्रष्टाचार के खिलाफ मौन और असहाय रवैया सारे देशवासियों के लिए एक अभिशाप बनता जा रहा है. भले ही प्रधानमंत्री जी एक बहुत अच्छे सलाहकार रहे हो लेकिन एक शासक के तौर पर वो पूरी तरह से निराश कर रहे है. उनको मानना पड़ेगा कि योजनाये बनना एक बात है और उनको सुचारू रूप से लागू करवाना दूसरी बात, और इन दोनों ही बातो की जिम्मेदारी उनकी ही बनती है. भले ही देश कितनी ही गहराई से भ्रष्टाचार से त्रस्त होता जा रहा हो लेकिन हमारी केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अभी भी बस मूक बधिर है.
आज देश की किसी भी त्रासदी या दुर्घटना के पीछे, कही न कही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार या कुशासन ही जिमेदार होता है. आप चाहे तो लाखो करोड़ो के घोटालों की बात हो या फिर बांदा जिले में दुराचार की शिकार एक लड़की या दक्षिण में मंदिर के बाहर की कुव्यवस्था, कही न कही आप को ऐसे लोग ही जिम्मेदार मिलेगे जिन्होंने अपना काम ईमानदारी से नहीं निभाया. राजनीतिक दल “Fund” के चक्कर में अपराधियों और काले धन को शह देते है और सुरक्षा एजेंसियां अपनी जगह मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों के लिए काम करते है. भ्रष्टाचार और कुशासन का एक पूरा सिस्टम सा बन गया है.
हर एक राजनीतिक दल, दूसरे के ऊपर कीचड उछाल कर के अपने को पाक साफ दिखने की कोशिश कर रहा है. सरकार ने दागदार अधिकारी मुख्य सतर्कता आयुक्त “पी.जे. थॉमस” के पीछे खड़े हो कर संकेत दे दिए है की वह किस की तरफ है. एक तरफ कांग्रेस ने शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर डाल के मान लिया है की हर तरफ सब अच्छा है और वही “भाजपा” के लिए भी भ्रष्टाचार एक सामाजिक समस्या से अधिक एक राजनीतिक लाभ का मुद्दा है. भले ही गुहाटी में “भाजपा”, भष्टाचार के मुद्दे को बड़े जोर शोर से उठाया हो लेकिन उनके ही शासित प्रदेश “कर्णाटक” में भी हालत कुछ बहुत अच्छे नहीं है. दक्षिण में अपना गढ़ बचाए रखने के लिए “भाजपा” खनन माफियो के सामने घुटने के बल बैठी है.
एक अरसे से देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानून की आवश्यकता है लेकिन जब कानून बनाने वाले ही दागदार है तो कुछ खास उम्मीद नहीं करी जा सकती है. देश में चपरासी की नौकरी के लिए तो १०वी पास और अपराध रहित भूतकाल माँगा जाता है लेकिन संसद की शोभा बढ़ने वालों के लिए किसी भी न्यूनतम योग्यता की आवश्यकता नहीं है. आप के शहर का नमी गुंडा- बदमाश भी आप के शहर का संसद में प्रतिनिधित्व कर सकता है और वह भी इस लिए नहीं की उसमे कोई योग्यता है या नेतृत्वक्षमता है, वह इस लिए की उसके पास ताकत है, उसके पास धन है. आज के भारत में जहाँ ताकत है, जहाँ काला धन है वही राष्ट्रघाती सामर्थ्य है.
[निराशा के साथ विचारो को विराम नहीं दे सकता हूँ, क्योंकि दिल अब भी कहता है कि हालात बदलेंगे…]
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