जब से “हिना रब्बानी” साहिबा भारत के दौरे पर आई हैं, सारा इलेक्ट्रानिक मीडिया मानो उनके रूप और सौंदर्य के बखान में लग गया है. कोई उनकी कम उम्र की बात करता है और कोई उनके पर्स और सैंडिल के ब्रांड की. पाकिस्तान सरकार ने भी अच्छी चाल चली, अपनी नयी नवेली मंत्री महोदया को सबसे पहले भारत भेजकर; उनको भी पता है, हिंदुस्तान जाकर, भले भी वो खली हाथ लौटे लेकिन पाकिस्तान के इस नए चेहरे को दुनिया भर की खबरों में उचित स्थान मिल जायेगा.
जैसा की पिछली बीसियों वार्ताओं का हल निकला है ठीक वैसा ही हल इस बार भी निकला, जो है “कुछ नहीं”. दोनों देशों ने कहा की आतंकवाद दोनों ही देश की परेशानी है, हमको साथ रहना है, साथ चलना है और बहुत कुछ. ये सब बाते कुछ दिनों तक मीडिया में छाई रहेगी और एक दिन फिर अचानक कही मुंबई और दिल्ली में बड़े हमले होंगे और फिर वही राजनीतिक उठापटक, दिखावटी संवेदनाओ/क्रोध का सिलसिला शुरू हो कर ख़तम हो जायेगा.
पाकिस्तान के मंसूबे क्या है वो तो हिना जी ने, भारत आते ही बता दिए. उन्होंने देश के चुने हुए प्रतिनिधियों से पहले अलगाववादी नेताओ से मिलना मुनासिब समझा. ठीक जिस दिन दोनों देशो के विदेश मंत्री हाथ मिला रहे थे, उसी समय पाकिस्तानी सेना अतंकवादियो को घुसपैठ करा रही थी.इस लड़ाई में सीमा पर तैनात “नायब सूबेदार लाल सिंह किट्ठी”, वीरगति को प्राप्त हुए. इस तरह की शांति और सौहार्द मेरी समझ के बाहर है, लेकिन देश के नेताओ की नजर में न तो सैनिको का खून की कोई कीमत है और देश की सुरक्षा और सम्मान की . किसी संप्रभु राष्ट्र का इस तरह अपमान विरले ही देखने को मिलता है.
कश्मीर मुद्दे पर भी, सरकार का कोई स्पष्ट रुख नहीं है, मुद्दा जहाँ पाक अधिकृत कश्मीर का भारत में विलय होना चाहिए, मुद्दा जहाँ पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी प्रोजेक्ट्स का होना चाहिए वहां सरकार किसी दुसरे ट्रैक पर ही दौड़ रही है. अभी हिना जी भारत में है, मुस्कुराहटो और दवातो का दौर जारी रहेगा, लेकिन असली नीति और निर्णय तो वापस पाकिस्तान जा कर ही लिए जायेगें. तो हम इंतजार करेंगे……
मुझे दोस्ती से कभी शिकायत ही नहीं थी…. पर खंजर लिए हाथों से गले मिलें, तो कैसे….
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