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‘अन्ना’ के साथ – पथ मेरा मुझको दिखलादे….

विचार भूमि
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मुझको मेरी राह बतादे, पथ मेरा मुझको दिखलादे…
तू तो है सब ज्ञान का दाता, छिपा कोई कुछ तुझ से पाता !!!

तम का ऐसा राज चला है, सत्य राष्ट्र को छोड़ चला है…
झूठ यहाँ पर धर्म हुआ है, धर्म की खातिर खून हुआ है…

आज यहाँ चलता तो हो है, जो जितना बदनाम हुआ है…
इन्सां जो सच्चे ईमान का, वो तो बस बे-दाम हुआ है…

अरे !!! तूने ही इन्सान बनाये, और ज्ञान के दीप जलाये…
कर्म का ज्ञान दिया गीता में, धर्म की खातिर जग में आये…

आज राष्ट्र फिर मांग रहा है, आशा से वह देख रहा है..
एक चला “सिद्धि” से बढाकर, जीवन अपना झोक रहा है…

राष्ट्र, सत्य और त्याग के पग पर….
मेरे भी कुछ पग बढ़वा दे…मुझको मेरी राह बतादे…पथ मेरा मुझको दिखलादे…

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