कल संसद में FDI पर बड़े हो हल्ले के साथ चर्चा हुई या ये कहिये FDI ने नाम पर लोकतंत्र की नाट्यशाला में, फिर से तमाशा किया गया. एक ऐसा मुद्दा, एक ऐसी समस्या, जिसमे “ईस्ट इंडिया कंपनी” जैसी विकरालता है, वह लालू जी के भद्दे मजाक और राजनैतिक जोड़ घटाने के बीच, हवा में उड़ा दी गई. वह संसद जहाँ उम्मीद थी की, वहां भारत जैसे बड़े और विविधता से परिपूर्ण देश के नफे और नुकसान की बात होगी, वह सिर्फ कुछ नेताओं के दोगलेपन और विजय-पराजय की गणित का गवाह बनी.
कल सरकार ने दिखाया की उसकी द्रष्टि में भारत एक देश न रह कर सिर्फ एक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार है, और उसको अपने देश के किसान और खुदरा व्यापारियों से अधिक विदेशी उद्योगपतियों की चिंता है. कोई शक नहीं भारत जैसे परंपरागत देश में, खुदरा में FDI किसी अभिशाप से कम नहीं. आश्चर्य होता है, जनता के लिए, जनता के द्वारा चुनी गई सरकार, कैसे आंख बंद कर के, गहराई से देश का हित अनहित जाने बिना, किसी निर्णय को थोपने के लिए इतनी उतावली हो सकती है. लेकिन सरकार ने यह फिर से जता दिया की, सरकार की नीतियाँ विदेशों में पढ़े लोग, विदेशियों को ध्यान में रख कर ही बनाते हैं.
सबसे अधिक आश्चर्य उन राजनीतिक दलों के व्यव्हार से हुआ, जो अपने आप को देश के सबसे पिछड़े और गरीब लोगो का नुमाइन्दा बताते हैं. इसको जनता के साथ, मजाक ही कहा जायेगा कि, सपा और बसपा ने FDI का समर्थन इस लिए किया क्योकि वो साम्प्रदायिकता का विरोध करते हैं. इन नेताओ से ये सवाल पूछा जाना चाहिए, कि वो राजनीति, मुद्दों के आधार पर कर रहे हैं या किसी पार्टी के नाम पर. उनसे पूछा जाना चाहिए, की FDI और साम्प्रदायिकता में क्या सम्बन्ध है. उनसे पूछा जाना चाहिए कि, आखिर वो कब तक साम्प्रदायिकता का नाम ले कर देश के साथ इस तरह ही छल करते रहेगे.
विश्वाश कीजिये, मैंने देखा है वालमार्ट का प्रभाव, मैंने देखा है कैसे इसने अमेरिका के किसानो और उद्योगों को चौपट किया है. अमेरिका के किसी भी वालमार्ट में आप को ५ प्रतिशत भी सामान अमेरिका का नहीं मिलेगा. सारा सामान बाहर देशो से सस्ते दामों पर आता है, और उचित मुनाफे के साथ जनता को बेचा जाता है. यही उनका बिज़नस मॉडल है, और ऐसे ही ये मुनाफा कमाते हैं. आने वाले १५-२० साल में यही हाल भारतीय किसानो और व्यापारियों का होने वाला है, जब हिंदुस्तान में इलेक्ट्रॉनिक सामान चीन से, सब्जियां मक्सिको से और कपड़े बांग्लादेश से आयेगे.
सरकार बड़े गर्व से अपने खामियों को, FDI के फायदे बता रही है. भंडारण की समस्या, बिचौलियों की कमीशनखोरी, अच्छे बीज, अच्छी खाद जैसे समस्याएं जिनसे भारत सरकार को निपटना चाहिए था, सरकार उम्मीद करती है उसे विदेशी कम्पनियाँ सुधरेगी. वो मुनाफा जो विदेशी कंपनियों की ज़ेबों में जायेगा, वह भारत सरकार का भी हो सकता है अगर वो खुद ईमानदारी से काम करे, और पारदर्शिता से पहल करे.
यह सवाल लेकिन अभी भी अनुतरित है, की FDI और साम्प्रदायिकता में क्या सम्बन्ध है!!! जिसके आधार पर दो बड़ी राजनीतिक ताकतों ने, विदेशी लुटेरों को भारत में गुसपैठ कराने वाले “हाथ” को मजबूत किया.
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