Menu
blogid : 1336 postid : 457

बेचैन चीन…

विचार भूमि
विचार भूमि
  • 49 Posts
  • 463 Comments

आज लाल सेना को भारतीय भूमि पर अतिक्रमण किये हुए दस से भी अधिक हो गएँ हैं, और हम अब भी शांति का मार्ग ढूंढ़ रहे हैं. सरकार भ्रमित है और विकल्प-विहीन भी. कोई आप के घर में बलपूर्वक दस दिन कब्ज़ा किये रहे और आप के पास विकल्प न हो, बड़ा अजीब लगता है सुन के, और समझ के. आज भी विदेशमंत्री जी ने कहा, वार्ता चल रही है और परिणाम आने में कुछ वक्त लगेगा. भारत की विदेशनीति इतनी लचर , इतनी दिशा-विहीन शायद ही कभी रही होगी. हिंदुस्तान को आंखे दिखने में, अब तो छोटे देश भी पीछे नहीं रहते हैं और बड़े देश, भारत की संप्रभुता का कितना आदर करते हैं वो लद्दाख में दिख रहा है. पिछले कई खोखले “वादों और कड़े संदेशों” की रौशनी में मुझे लगता है, विश्व ने हिंदुस्तान को संजीदगी से लेना त्याग दिया है. सबको पता है शायद, कि हिंदुस्तान की सत्ता बातें चाहे कितनी ही बड़ी बातें कर लें, परिणाम निकालने की कुवत उनमे नहीं हैं.भारत सरकार का इक़बाल हिंदुस्तान के अन्दर और बाहर दोनों जगह ख़तम हो गया है.


वह चीन जो पिछले दो दशक से अपने सरहदी इलाके को मजबूत और अजेय बना रहा है, हिदुस्तान के नियुन्तम विकास और निर्माण की जरूरतों पर भी उसे घोर आपत्ति है. भारत की सरकारें जो अपनी पीठ थप थापा रही थी, की पिछले फलां सालों से चीनी सरहद पर एक गोली भी नहीं चली है, उस दावे की पूरी हवा दस दिन पहले चीनी प्रशासन ने निकल दी. भारत सरकार, चीन के साथ अपने अच्छे संबंधो के बारे में चाहे कुछ भी दावे करती रहे, चीन आज़ादी के बाद से लगातार भारत के खिलाफ ही काम करता रहा है. वह चाहे संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का मसला हो, हिंदुस्तान पर हमला हो, कश्मीर के लिए नत्थी वीसा हो, पाकिस्तान को सैनिक और तकनीकी मदद हो, हर बार रह जगह उसने यही सन्देश और प्रमाण दिए की हम दोस्त नहीं है. हम फिर भी यही मानते हैं, रेत में सर दबा लेने से रात हो जाती है.


वह व्यापारिक हित किसी काम के नहीं हैं, जिनकी कीमत हमें अपने संप्रभुता खो के चुकानी पड़े. वो सारे देश, जो चीन के सामने क्षेत्रफल और सामर्थ्य में उसके सामने कही नहीं टिकते, वही भी इतना दब्बू रवया नहीं अपनाते, जिस तरह से हम चीन के सामने गिड़गिडातें हैं. आखिर फायदा क्या है इतनी भरी भरकम फ़ौज रखने का, जब सरकार न तो पाकिस्तान से अपने सिपाहियों के सर ला सकती है, और न चीनियों को अपनी जमीन से बेदखल कर सकती है. गुस्ताखी की सजा तो बड़ी दूर की बात है, हम अपना हक भी, उनकी कृपा जैसे मांगते हैं.


किसी टीवी वार्ता में सुन रहे थे हम, कि हमारे हाथ बंधे है और दौलत बेग इलाके में चीनी हम से बेहतर स्थिति में है. मेरा सवाल है, चलिए मान लेते हैं, वो दौलत बेग में हम से बेहतर स्थिति में, लेकिन बाकि जगहों पर जहाँ भारतीय फौजें मजबूत स्थिति में हैं, वहां हम क्यों बीस किलोमीटर तक अन्दर नहीं जाते. जैसा वो हमारे साथ कर रहे हैं वैसा ही भारतीय फौजों को उनके साथ करना चाहिए. अभी भी उचित समय है जब भारत “सठे साठ्यम समाचरेत” वाली नीति पर अपने पड़ोसियों के साथ चलना प्रारंभ कर दे. अगर वो कश्मीर का नत्थी वीजा दें, तो हिंदुस्तान भी तिब्बत के लिए नत्थी वीजा जारी करे. अगर वो दस किलोमीटर भारत के अन्दर प्रवेश करें तो हिंदुस्तान भी बीस किलोमीटर उनकी जमीन पर कब्ज़ा करें. अगर वो दो सर हिन्दुस्तानियों के काट के लिए जाये तो उनकी चार लाशें हिंदुस्तान कि जमीं में खाक हों.


शालीनता और कायरता को बहुत पतली रेखा अलग करती है, और ये शालीनता कहीं हमारे कायर होने का प्रमाणपत्र न बन जाये, ये देखना होगा.


अमिर मिनाई साहब का वह शेर बरबस ही याद आ जाता है, “कि वो सर काटें मेरा बेदर्दी से और हम कहें उनसे, हुजूर अहिस्ता अहिस्ता, जनाब अहिस्ता अहिस्ता…”


जय हिन्द !!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh