चुनाव के दौरान, गृह जनपद में, अपने घर काम करने वाली महिला से, जिज्ञासावश हमने पूछा, “ई बार, कीका वोट दय रही हउ अम्मा ?”. हमारा सवाल जितना सामान्य था, उनका जवाब उतना ही असमान्य. जब से बसपा राजनीती में है, वह तब से बसपा की समर्थक रही हैं; तो हम अपेक्षा कर रहे थे, वह या तो मायावती जी का ही नाम लेंगी या इस बार विकास के स्वप्न के वशीभूत हो कर नरेंद्र मोदी जी का. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उनका जवाब था “भइया, का हम लोग गरीब नाय हन? सरकार मुसलमान लड़कीअन का ३०,०० रूपये, उनकी ही सुनवाई होत है, और हम लोगन के लिए कुछ नाय”. उनका यह विरोध न तो इस्लाम के खिलाफ था और न मुस्लिम परिवारों के खिलाफ, उनका विरोध था उस शासन के खिलाफ, जिसकी नज़र में एक गरीब, गरीब होने से पहले एक मुसलमान है.
कुछ समय के लिए हम सोच में पड़ गए, क्योकि उनके इस जवाब ने, यह जता दिया था कि इस बार चुनाव अप्रत्याशित हैं, और इस बार का मुद्दा भी बिलकुल अलहदा है. पूरे उत्तर-मध्य भारत में भाजपा की एक तरफ़ा विजय और पूर्वी-पश्चिमी भारत में प्रभावशाली उपस्थिति ने यह दिखा दिया हैं कि, देश ने तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष ठेकेदारों को माकूल जवाब देने का मन बना लिया था. पिछले दस वर्षो में जिस तरह, धर्मनिरपेक्षता की ढल ले कर, धर्म विशेष का तुष्टिकरण किया जा रहा था, उससे ये प्रतीत होता था, मानों हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में न रह के, एक इस्लामिक राष्ट्र में रह रहे हैं. जहाँ सही और गलत का पैमाना, धर्म विशेष के कट्टर विशेषज्ञ तय करेंगे.
जब देश का प्रधानमंत्री, यह कहने के बजाये कि “इस देश के संसाधनो पर सब का सामान अधिकार है”, कहते हैं ” इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानो का है”; धर्मनिरपेक्ष देश की नीव कुछ दरकती है. जब एक सबसे बड़े प्रदेश का सबसे ताकतवर मंत्री, यह कहने के बजाये कि “कारगिल कि चोटियों को हिन्दुस्तानियों ने मिल कर जीता था”, कहते हैं “कारगिल कि चोटियों को मुसलमानों ने जीता था”; धर्मनिरपेक्ष देश की नीव कुछ हिलती है.
वह सुशासन बाबू जिनका मानना है, देश चलने के लिए टोपी पहनी पड़ेगी और जिनको सियासत के लिए, इबादत कि चीज़ों के इस्तेमाल में कोई परेशानी नहीं है, वह स्वयं या उनका कोई मंत्री, मस्तक विहीन योद्धाओं को सम्मान देने के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, लेकिन अगर देश में कोई अवैध बंगला-देशियों के खिलाफ बोल दे, तो इनके माथे पर बल पड़ जाते हैं.
हमारा सवाल है, जब देश के उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी जी और मुस्लिम धर्म गुरु मदनी साहब को, यह धार्मिक आजादी है कि वह तिलक न लगाये, आरती में भाग न ले तो फिर, नरेंद्र मोदी जी को वही धार्मिक आजादी क्यों नहीं है? क्यों हिन्दुओं कि धर्मनिरपेक्षता कि कसौटी अलग और मुसलमानो के लिए अलग.
अब देश का जवाब सभी सियासतदारों के सामने है, यह एक उत्तम समय है धर्म और जाति से आगे बढ़ के सब का विकास, सब को न्याय, सब की सुरक्षा, के पथ पर आगे बढ़ा जाये. उम्मीद करते हैं, जहाँ नयी सरकार, तुष्टिकर से आगे निकालकर राष्ट्रहित में फैसले लेगी और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित भी करेगी कि, हर धर्म का सम्मान हो और हर किसी को धार्मिक स्वतंत्रता मिले.
हम सभी को इस दिशा में आगे बढ़ाना ही होगा कि राष्ट्र किसी भी धर्म, किसी भी जाति से ऊपर है; और तभी “एक भारत और श्रेष्ट भारत” का स्वपन, यथार्थ में बदलेगा.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments